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'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।

बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,

घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,

लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,

हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,

अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!

चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।

'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,

वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,

Some of these poems like "veer tum badhe chalo" and "Jhansi wali rani" had been within our system in class...All those days I learnt them by heart and even now Once i recite never ever miss out on a term..

स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा Hindi Poetry पर, दुख क्या जाने,

प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९।

आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,

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